युवा कवि शैलेन्द्र शुक्ल को पाँचवां डॉ. रविशंकर उपाध्याय स्मृति पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई है। उन्हें अशेष मंगलकामनाओं के साथ संस्थान से प्राप्त घोषणा के साथ यहाँ उनकी पाँच कविता साझा किया जा रहा है।आप उनकी कविताओं का आस्वाद लेते हुए उन्हें शुभकामनायें दें....
शैलेंद्र शुक्ल को रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार-2019
बी .एच .यू . ‘हिंदी विभाग’ के शोध छात्र रहे युवा कवि रविशंकर उपाध्याय की स्मृति में प्रति वर्ष दिया जाने वाला 'रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार’ इस वर्ष सीतापुर के रहने वाले युवा कवि शैलेंद्र शुक्ल को दिया जायेगा।शैलेंद्र साहित्यिक रुचि रखने वाले सचेत रचनाकार हैं तथा वे वर्तमान युवा कविता के उभरते हुए एक संभावनशील युवा कवि हैं।उनके काव्य रुचि और रचनात्मकता को ध्यान में रखते हुए इस समिति के निर्णायक मण्डल ने उन्हें इस वर्ष के पुरस्कार के लिए चुना है।इस पुरस्कार का निर्णय महत्वपूर्ण सुप्रसिद्ध कवि अरुण कमल(पटना), आलोचक अरुण होता (कोलकाता)प्रतिष्ठित कवि मदन कश्यप(दिल्ली),चर्चित कथाकार अखिलेश(लखनऊ), और महत्वपूर्ण कवि श्रीप्रकाश शुक्ल(वाराणसी) की समिति ने सर्वसम्मति से किया है।यह पुरस्कार 12 जनवरी को रविशंकर उपाध्याय के जन्मदिन पर आयोजित एक कार्यक्रम में दिया जायेगा।
निर्णायक मंडल ने शैलेंद्र शुक्ल के नाम की अनुशंसा करते कहा है कि समकालीन हिन्दी कविता में कम ऐसे कवि हैं जिनके यहाँ पारम्परिक ग्रामीण जीवन का क्षेत्र अपने सम्पूर्ण विविधता एवं ऐश्वर्य के साथ मिलते हैं।शैलेंद्र शुक्ल इन्हीं थोड़े से कवियों में हैं।उनकी कविता हमारे जीवन के रोज के पदार्थों एवं प्रसंगों को नई आभा देती हैं।इस कारण जो परिचित है वह भी और जो अतिपरिचित है वह भी नया लगने लगता है। इनके यहाँ अवधी के शब्द , मुहाबरे एवं लय की प्रधानता हिन्दी कविता को नई संरचना देती है। शैलेंद्र शुक्ल की कविताएँ रविशंकर उपाध्याय की कविताओं के स्वभाव एवं चरित्र के बहुत क़रीब हैं।
ध्यातव्य है कि प्रतिभाशाली युवा कवि रविशंकर उपाध्याय का 19 मई 2014 को बी .एच .यू .के अस्पताल में तीस वर्ष की अवस्था में ही ब्रेन हैमरेज से निधन हो गया था ।वे छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय थे और बी. एच. यू. में 'युवा कवि संगम' जैसे आयोजन के संस्थापकों में थे।उनका पहला कविता संग्रह "उम्मीद अब भी बाकी है" नाम से उनकी मृत्यु के बाद वर्ष 2015 प्रकाशित हुआ था।उनकी स्मृति में पहला पुरस्कार वर्ष 2015 में रांची की युवा कवयित्री जसिंता केरकेट्टा को ,दूसरा पुरस्कार वर्ष 2016 में बलिया के अमृत सागर को,तीसरा पुरस्कार वर्ष 2017 में दिल्ली के निखिल आनंद गिरि को तथा चौथा पुरस्कार वर्ष 2018 बलिया के अदनान कफ़ील दरवेश को दिया जा चुका है।
अध्यक्ष
रामकीर्ति शुक्ल
रविशंकर उपाध्याय स्मृति संस्थान
कविताएँ
पड़िया के जन्म पर सोहर
चलनिया में भर कर नाज
उतार रहीं थीं महतारी
धन में श्रेष्ठता के सबसे पुराने मान
गोधन पर
ले आये गए हैं थनिहा के पात
बन रहा है सोठौरा
गमक रही है
एकेहुला पर चढ़ी कड़ाही में गुड़
टोले में चर्चा है
कि आज बियायेगी भैंसिया
दुकन्दार की
अम्मा सुमिर रही हैं
देई-देउता भली के ताईं
कि महिषी उठ-बैठ रही है ओसारे में
प्रसव पीड़ा से बेहाल
पिता मुस्तैद हैं
किसानी दुनिया के तमाम अनुभवों के साथ
एक कुशल चिकित्सक जैसे
मंगा कर रख लिए हैं
देशी दारू का एक पउवा
सद्य प्रसूता महिषी की मालिश के लिए
मां सुलगा रही हैं कंडी
कर रही है धुमायित
दहकती आग पर सरसौ और अजवाइन
सुरक्षित हो रहा है परितः
अभी-अभी उबर आयी है भैंस
चाट रही है अपना शावक
चिहुँक रही है पड़िया
आह्लादित हो गया है पूरा घर
मुझे याद आ रही है पुराने अवधी सोहरों की धुन
स्मृति में अशेष है ढोलक की थाप।
पिता और शरद का पूरा चाँद
(पिता के जन्मदिन पर पुनः)
शरद की दहलीज़ पर ठहरा है चाँद
जैसे बर्फ का गोला हो
ताजे चोए हुए दूध में
कोल्हू से निकला हो गन्ने का ठंढा रस
कि कड़ाह से उठी हो मादक गंध गुड़ बनने की
कि सिंघाड़ की पतली फैल गई है पूरे ताल में
कि फूले हैं कुमुदनी के बहुत प्यारे सफ़ेद फूल
शरद की शाम में
कट चुकी है इधर खरीफ की फसल
पुवाल के ढेर पर महक रहे हैं ओस के तुहिन
छप्पर पर फैली है पीले फूलों वाली कोहड़े की बेल
बारिश के जाते ही आ गए हैं चांचल्य चकित रुचि वाले खंजन
शरद की अगवानी में
कैलेंडर में टांग दिये गए हैं नवंबर
तेज धार वाला सरपत फूल गया है लंबी-लंबी सफ़ेद सींकों पर
खेतों में महक रही है नम जोती हुई मिट्टी की सोंधी गंध
रवि के बीज लिए किसान निरख रहा है धरती की कोख
शरद के सबसे कोमल दिवस की देहरी पर
यह शरद सिर्फ शरद नहीं
यह चाँद सिर्फ चाँद नहीं
एक पूरी सभ्यता का अरघान है
यह शरद का पूरा चाँद मेरे पिता का जन्मदिन है।
© शैलेन्द्र कुमार शुक्ल
15/10/16
यह कच्ची मिट्टी का घर है
इस पर श्रम के अरघानों का
पुरुखों ने इतिहास लिखा है
इस पर सविता की किरणों ने
नई भोर का ताज रखा है
इसे बनाया चिड़ियों ने भी
वर्षा ऋतु में रैन बसेरा
काले भौरों ने सिरजा है
शरद घाम में नर्म सबेरा
सहतीरों में यहां लखोरी का लख भवन सुरक्षित होगा !
जहाँ रखे मृद भांड संजोए
बंधे हुए सिकहर पर सुंदर
जहां रोज बटती है हल्दी
सिल सुमेरु पर सजे पुरन्दर
उछल कूद जब कब करते हैं
नटखट बड़े सजीले बंदर
यहां बिल्लियां चोरी करतीं
दादी की कोठरी के अंदर
मुड़वारी पर काग बोल कर स्वर्ण चोंच मढ़वाता होगा !
जहाँ भीत पर लपक चढ़ रही
कोहड़े की यह बेल सुहानी
छप्पर पर कुछ चहक रही हैं
चिड़िया हैं जानी पहचानी
हरित पंख पर कंठ बैगनी
सुग्गा पट्टे पूत कहानी
सकल सृष्टि यह प्यारी मुझको
तप बल चमके यहां जवानी
मैं कुम्भन हूँ सिकरी वाला महल मुझे कैसे प्रिय होगा !
ऊब
गीली धरती पर
चटख घाम सी
हमारी ऊब उमस बन
उमड़ रही है चहुँ ओर
छितराई हुई दूब पर
सुबह दिखेंगे
तुहिन
श्रम के शील से हर बार
मेहनत से नहीं बेगार से डर है मुझे
मरना शायद बेरोजगार होना है।
अवधी पद
बुढ़ऊ रहैं बड़े अकबाली !
ताजुब होय तजुर्बा देखे लोक लगन दिलवाली
चौहद्दी के मनई जानयिं आभा रहै निराली
बड़े जमाना देखिन बाबा देखिन सुर्जन लाली
भारत की आजादी देखिन सरकारै हरियाली
कठिन जिंदगी संघर्षन मा निकरै जौं की बाली
पोर पोर निगरानी कीन्हिन सिरजि करिन रखवाली
श्रम ते करम ज्ञान कै जीवट मति गति हिम्मतवाली
दिहिन सलाह निरंतर नीकी नित नव जनहित वाली
फाग के भाग सरद के कोरस ऋतु ऋतु देखी भाली
घाघ भंडरी रहिमन तुलसी कबिरा गिरा मराली
बात बात पर हेरि सुझावैं जस बगिया का माली
गिरति दौंगरा बुढ़ऊ चलि भे धरिगे जग अकबाली।